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हिंडनबर्ग का दावा है कि उसकी रिपोर्ट दो साल तक चली रिसर्च के बाद तैयार हुई है और इसके लिए अदानी ग्रुप में काम कर चुके पूर्व अधिकारियों के साथ-साथ कई अन्य लोगों से भी बात की गई है और कई दस्तावेज़ों को आधार बनाया गया है.
समीर का नाम बेनामी कंपनियों के ज़रिये डायमंड ट्रेडिंग में आने के बाद भी उन्हें अदानी ऑस्ट्रेलिया डिवीजन का एक्जीक्यूटिव डायेरक्टर क्यों बनाया गया है.
ये तारीख़ इसलिए अहम है कि इसके दो दिन बाद ही 27 जनवरी को गौतम अदानी की कंपनी शेयर बाज़ार में सेकेंड्री शेयर जारी करने वाली थी. ये कोई छोटा-मोटा इश्यू नहीं है, बल्कि अब तक का सबसे बड़ा 20 हज़ार करोड़ रुपये का एफ़पीओ है.
अदानी ग्रुप के सीएफ़ओ जुगेशिंदर सिंह ने एक वीडियो संदेश में कहा कि इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले ग्रुप से किसी तरह का संपर्क नहीं किया गया और न ही फैक्ट्स को वेरिफ़ाई करने का प्रयास किया गया.
डिया को एक बयान में अदानी ने हमारी 106 पन्नों की, 32 हज़ार शब्दों की और 720 से ज़्यादा मिसालों वाली दो सालों में तैयार की गई रिपोर्ट को "बिना रिसर्च का" बताया और कहा कि वो हमारे ख़िलाफ़, "दंडात्मक कार्रवाई के लिए अमेरिकी और भारतीय कानूनों के तहत प्रासंगिक प्रावधानों का मूल्यांकन कर रहे हैं."
जहां तक कंपनी के द्वारा क़ानूनी कार्रवाई की धमकी की बात है, तो हम साफ़ करते हैं, हम उसका स्वागत करेंगे. हम अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह से कायम हैं, और हमारे ख़िलाफ़ उठाए गए क़ानूनी कदम आधारहीन होंगे."
हालाँकि इन 88 सवालों के जवाब में दो अहम सवाल हिंडनबर्ग से भी पूछे जा रहे हैं- पहला, ख़ुद को 'एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग' बताने वाली कंपनी अरबों रुपये का मुनाफ़ा भुनाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रही और दूसरा सवाल रिपोर्ट की टाइमिंग को लेकर है. शुक्रवार को अदानी एंटरप्राइसज़ेज का 20 हज़ार करोड़ रुपये का एफ़पीओ आने वाला था, उससे ठीक पहले क्या इसे जानबूझकर जारी किया गया?
रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि टैक्स हेवन देशों (मॉरीशस और कई कैरेबियाई देश- इन देशों में पैसा जमा करने या व्यापार के लिए लगाई गई रकम का स्रोत बताना ज़रूरी नहीं है. साथ ही इन देशों में टैक्स भी काफी कम या नहीं देना पड़ता है) में कई ऐसी फर्जी कंपनियां हैं जिनके पास अदानी समूह की कंपनियों की हिस्सेदारी है.
जबकि उनके ख़िलाफ़ कस्टम टैक्स चोरी, आयात से जुड़े फ़र्ज़ी काग़ज़ात तैयार करने और अवैध कोयले का इंपोर्ट करने का आरोप लगाया गया था.
गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी के ख़िलाफ़ भी सरकारी एजेंसियां जाँच कर रही हैं. उनके ख़िलाफ़ विदेशों में फ़र्जी कंपनियों के ज़रिये अरबों डॉलर अदानी की कंपनियों में लगाने के आरोप हैं, जिसमें हवाला की रकम भी शामिल है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस रकम के ज़रिये अदानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाए गए.
अदानी समूह का कहना है
हिंडनबर्ग के 88 में से 21 सवाल वो हैं जो पहले से ही सार्वजनिक हैं. हिंडनबर्ग का ये दावा ग़लत है कि ये उनकी दो साल से अधिक की जाँच पर आधारित हैं, जबकि जिन नतीजों पर वो पहुँचा है वो दस्तावेज़ 2015 के बाद से कंपनी ने ख़ुद अलग-अलग मौकों पर जारी किए (डिस्क्लोज़र) हैं. ये सवाल लेन-देन, राजस्व विभाग और अदालती मामलों से जुड़े हैं.
अदानी इंटरप्राइसेज़ और अदानी टोटल गैस का ऑडिट ऐसी कंपनी से कराया गया जो बहुत छोटी है और इसकी कोई वेबसाइट तक नहीं है. इसके चार पार्टनर्स और 11 कर्मचारी हैं और ये ऑडिट कंपनी सिर्फ़ एक और सूचीबद्ध कंपनी का ऑडिट ही करती है. रिसर्च कंपनी का आरोप है कि ऐसे में इस कंपनी के लिए ऑडिट और भी मुश्किल हो जाता है, जबकि अदानी इंटरप्राइसेज़ की 156 सब्सिडियरियां हैं और कई जॉइंट वेंचर्स हैं.
हिंडनबर्ग ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि अदानी समूह की कुछ कंपनियों में आय को वास्तविक से अधिक दिखाया गया और बैलेंसशीट के साथ हेरफेर किया गया.
हाँ तक शेयरों पर उधार लेने का सवाल है तो ये उधारी प्रमोटर्स होल्डिंग की चार फ़ीसदी से भी कम है.
रेफ़िनिटिव ग्रुप द्वारा जारी आंकड़े भी बताते हैं कि अदानी ग्रुप की सात सूचीबद्ध कंपनियों पर कर्ज़ उनके इक्विटी से ज़्यादा है. अदानी ग्रीन एनर्जी पर तो इक्विटी से दो हज़ार प्रतिशत ज़्यादा कर्ज़ है.
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